टीन प्रेगनेंसी का विषय जिस पर लड़कियों को बोलने का हक क्यों नहीं ?
टीन प्रेगनेंसी का विषय : भारत एक ऐसा देश है जहाँ आपको कई सभ्यताएं धर्म व भाषा देखने को मिलती है, एक ऐसा देश जो रोज नए मुकाम हासिल कर रहा है जिसे देख पूरा विश्व भी भारत देश की सराहना करता है, लेकिन वहीं आकाश जितना ऊँचा है पाताल उतना ही गहरा ,जहाँ अच्छाई है वहाँ बुराई भी। ‘हर सिक्के के दो पहलू होते है।’
आज हमारा भारत प्रगति की ओर बढ़ रहा है पर एक विकासशील देश से विकसित देश बनने की लिए देश में हो रहे कार्यो के साथ ही साथ एक और मुख्य चीज़ है, वह है – व्यक्ति की सोच,
बात अगर सोच के मामले की करे तो भारत अभी इस मामले काफी पीछे है।
आज समाज में कई ऐसे विषय है जिन पर लोग बात करने से डरते जिनमें से अगर औरतों की बात की जाए तो कहीं न कही आज भी औरतों को दबाया जाता है। उन्हें अपनी बातें, अपनी तकलीफे खुल के बोलने व सामने रखने का भी हक नहीं है।
कई विषयों पर लोग बात करना पसंद नहीं करते जिनमें से एक है : टीन प्रेगनेंसी
जब एक लड़की उम्र से पहले ही प्रेग्नेंट हो जाती है, चाहे व नासमझी में व जाने-अनजाने गलती में ही क्यों न हुआ हो लेकिन वो उस कठिन समय में भी किसी के सामने अपनी बात नही रख सकती है।
जब उसे अपनो की माता-पिता की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है तो वही अपने उसे हिम्मत देना तो दूर बल्कि उसे अपने ऊपर बोझ समझने लगते है और लड़की को ही दोष देते हैं। क्या इस चीज़ में भी गलती सिर्फ लड़की की है ? क्या वह अकेले ही जिम्मेदार है ?
जब उनके अपने बड़े ही इन बातों को करने से कतराते है तो क्या गलती सिर्फ लड़की की है ? जब वक्त रहते उस लड़की को इस विषय ‘सेक्स एजुकेशन’ से संबंधित सारे ज्ञान मिलने चाहिए तब उसे यह सारी चीज़े बताई नही गयी। आज भी लोग ‘सेक्स’ शब्द को बोलने तक से कतराते तो आज भी लोग इन विषयों पर बात करना टैबू समझते है।
तो अगर किसी लड़की से उम्र से पहले प्रेग्नेंट हो गयी है तो वह लड़की अकेले गलत नहीं है ! गलत है तो बड़े और ये समाज है। जब समाज ही इन विषयों पर बात होना गलत मान रहा है तो ऐसी गलती होने पर उस गलती को गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि गलती लड़की की नही समाज की है जिसने गलती को होने दिया।
अगर वक़्त रहते खुल कर लोगो को इन विषयों के बारे में बताया जाए तो शायद यह तीन प्रेगनेंसी जैसी चीज़े हो ही न और आज के समय में ‘सेक्स एजुकेशन’ सिर्फ लड़कियों नहीं बल्कि लड़को को भी यह एजुकेशन मिलनी चाहिए क्योंकि यह भी उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है जिसके बारे में उन्हें जानकारी होना जरूरी है।
12 से 18 ही बच्चों की उम्र होती जब व जिंदगी में नई चीज़ों की ओर बढ़ते व सीखते है। यह वह उम्र है जब उनके माता पिता को उन्हें जीवन के हर विषयों के बारे में जानना व समझाना होता है।
इसी उम्र में वह बच्चा सुधर भी सकता है व बिगड़ भी सकता है और गलत संगति में फँ के गलत राहों पर भी चल सकता है। इस उम्र में बच्चो में सही- गलत की पहचान करने की समझ नही होती है। यह वह समय है जब एक बच्चे को गाइड करने के लिए सिर्फ उनके बड़े, माता- पिता व शिक्षक होते हैं।
सेक्स एजुकेशन है जरूरी
भारत में लोग सेक्स जैसी चीज़ों पर बात करना ही गलत समझा जाता है। आज भी इन विषयों पर लोग धीमी रफ़्तार से अपनी पुरानी सोच को बदल पाएं हैं। आवाज़ में बातें करना व पब्लिक में इन विषयों पर न बात करना ही सही समझा जाता है बल्कि वास्तव में देखें तो बच्चों को स्कूल में ही बाकी विषयों के साथ सेक्स एजुकेशन का भी ज्ञान देना एक अहम विषय हो गया है।
भारत हर मामले में आगे होने के बाद भी सोच के मामले में आज काफी पीछे रह गया है। हाँ, बात करें अगर वेस्टर्न कल्चर की तो वहाँ लड़कियों को खुल के कहने, बोलने का हक व अपनी बातें ,परेशानियां बताने का अधिकार प्राप्त है व किसी भी विषय पर अपने माता पिता व अपनो के साथ अपनी बातें बाँट सकती है।
वहीं बात करे अगर भारत की तो यहाँ की संस्कृति की तो यह कहना शायद गलत नही होगा कि संस्कृति के नाम पर आज भी लड़कियों व औरतों से उनके हक छीने जा रहे है। आज भी लड़कियों को समाज में वह अधिकार प्राप्त हुआ ही नहीं है। आज भी लड़कियों को लड़को के सामने दबा कर रखा जाता है। टीन प्रेगनेंसी एक सच्चाई है जिससे मुँह मोड़ा नहीं जा सकता है इसलिए समाज में नाबालिग लड़कियों का दमन करने के बजाय मानवीय रूप से उनके प्रतनि संवेदना भरा रैवया दिखाए जाने की ज़रुरत है।
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